EPF News – हाल ही में जारी की गई सरकार की रिपोर्ट ने पेंशन व्यवस्था की असलियत को उजागर कर दिया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि देशभर के आधे से ज्यादा पेंशनभोगी ₹1500 से भी कम राशि पर अपना जीवन चला रहे हैं। इतने कम पैसों में दवाइयों, भोजन, किराया और रोज़मर्रा का खर्च उठाना लगभग नामुमकिन है। दूसरी तरफ, कुछ पेंशनभोगियों को ₹6000 या उससे अधिक की पेंशन मिल रही है। यह अंतर दिखाता है कि पेंशन वितरण में गंभीर असमानता है। लगातार बढ़ती महंगाई और स्वास्थ्य खर्चों को देखते हुए यह स्थिति बेहद चिंताजनक मानी जा रही है। अब सवाल उठ रहा है कि सरकार कब न्यूनतम पेंशन बढ़ाने पर विचार करेगी और बुजुर्गों को राहत देगी।

आधे से ज्यादा पेंशनभोगी आर्थिक संकट में
सरकारी रिपोर्ट बताती है कि 50% से अधिक पेंशनभोगियों की मासिक आय केवल ₹1500 या उससे कम है। इतनी कम राशि वर्तमान दौर में केवल दवाइयों या घर का एक छोटा हिस्सा ही संभाल सकती है। इस कारण अधिकांश बुजुर्ग अपने बच्चों या परिवार पर निर्भर रहने को मजबूर हो जाते हैं। ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में यह स्थिति और गंभीर है क्योंकि वहां रोजगार के साधन भी सीमित हैं। छोटे पेंशन पर जीवनयापन करने वालों की समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं। ऐसे में न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग और तेज हो गई है।

उच्च पेंशन पाने वालों को फायदा
जहां आधे से ज्यादा बुजुर्ग मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं, वहीं कुछ पेंशनभोगियों को ₹6000 या उससे अधिक पेंशन मिल रही है। यह लाभ आमतौर पर उन लोगों को मिलता है जिनकी सेवा अवधि लंबी रही है या जिनका वेतनमान ऊंचा रहा। यह असमानता पेंशन व्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी है। एक ओर पेंशनभोगियों का बड़ा वर्ग गरीबी जैसी स्थिति में जी रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ चुनिंदा वर्ग अपेक्षाकृत आराम से जीवनयापन कर पा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह असमानता सामाजिक संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है।
सरकार पर बढ़ता दबाव
रिपोर्ट के सामने आने के बाद कर्मचारी संगठनों और पेंशनभोगियों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि इतनी कम पेंशन के सहारे कोई भी बुजुर्ग सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकता। संगठनों की मांग है कि न्यूनतम पेंशन कम से कम ₹3000 से ₹5000 तक तय की जाए ताकि पेंशनभोगियों को राहत मिले। इस मुद्दे को लेकर विरोध और आंदोलन की संभावना भी जताई जा रही है। साथ ही, आने वाले चुनावों में यह एक बड़ा राजनीतिक विषय भी बन सकता है।

आगे की राह और संभावित समाधान
सरकार के सामने अब चुनौती है कि वह किस तरह सभी पेंशनभोगियों के लिए न्यायपूर्ण व्यवस्था कर पाए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि न्यूनतम पेंशन को महंगाई भत्ते (DA) से जोड़कर तय किया जाना चाहिए ताकि समय-समय पर इसमें स्वतः वृद्धि हो सके। इसके अलावा, छोटे पेंशनधारकों के लिए विशेष पैकेज भी लाना होगा। पेंशन फंड के प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ाना और असमानता को दूर करना अब जरूरी हो गया है। अगर सरकार समय रहते ठोस कदम नहीं उठाती, तो यह असमानता और गहरी हो सकती है और पेंशनभोगियों में असंतोष और बढ़ सकता है।

इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि पेंशन सुधार अब समय की मांग है। यदि न्यूनतम पेंशन राशि बढ़ाई जाती है तो लाखों बुजुर्गों को राहत मिलेगी और वे एक सम्मानजनक जीवन जी पाएंगे। सरकार चाहे तो इस मौके को सुधार के बड़े अवसर में बदल सकती है।